Bihar University News : कॉलेज में छात्र नहीं, 3 साल से पढ़ाया नहीं, 23 लाख सैलरी वापस लीजिये (एक प्रोफेसर की कहानी )

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क्षाबिहार यूनिवर्सिटी में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाली एक घटना सामने

Muzaffarpur 6 July : बिहार यूनिवर्सिटी में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाली एक घटना सामने आई है. बिहार यूनिवर्सिटी के नीतीश्वर कॉलेज के प्रोफेसर ने अपनी सैलरी के 23 लाख रुपए लौटाने की पेशकश की, कारण 3 साल में एक भी क्लासेस नहीं होना. अपनी 3 साल की पूरी सैलरी लौटने के लिए 23 लाख का चेक लेकर बिहार यूनिवर्सिटी पहुंचे.

Prof. Dr. Lalan Kumar

मुजफ्फरपुर में भीमराव अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ ललन कुमार ने अपनी 3 साल की सैलरी 23.83,,228 रुपए विश्वविद्यालय को लौटाने की पेशकश की . उन्होंने कहा कि जब क्लास होते ही नहीं तो मैं किस बात की सैलरी लूँ. प्रोफ़ेसर ने नौकरी छोड़ने की पेशकश भी की.


आइए जानते हैं रोचक मामला क्या है. राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू के टॉपर,वैशाली जिले के ग्राम शितलभ कुरहर निवासी प्रोफेसर डॉ ललन कुमार ने बताया कि उनकी नियुक्ति बी पी एस सी के माध्यम से असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुआ था. उन्होंने बताया की मेरिट और रैंक को अनदेखा करते हुए कम नंबर वाले को पीजी और अच्छे कॉलेज दिए गए और अच्छे रैंकिंग वालों को ऐसे कॉलेजों में भेजा गया जहां कोई क्लास नहीं होता है.

2019 और 22 के बीच कई ट्रांसफर पोस्टिंग हुई और उन्होंने चार बार आवेदन नहीं दिया. आवेदन में उन्होंने लिखा कि कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती, मैं बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं, मेरा ट्रांसफर एलएस कॉलेज आरडीएस कॉलेज पीजी डिपार्टमेंट में कहीं भी किया जाए जहां क्लास होती है. जहाँ मैं बच्चों को पढ़ा सकता हूं और जो ज्ञान अर्जित किया हूं उसे बांट सकता हूं. इन सब के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होने पर 25 सितंबर 2019 से मई 2022 तक प्राप्त सैलरी विश्वविद्यालय को समर्पित कर देना चाहता हूं.महाविद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या नगण्य है. क्लास क्लासेज नहीं होते हैं. जिस कारण अपने दायित्व दायित्व का निर्वहन नहीं कर पा रहा हूं इस स्थिति में सैलरी स्वीकार करना मेरे लिए अनैतिक है.


गौरतलब है कि प्रोफ़ेसर डॉ ललन कुमार नितिश्वर महाविद्यालय मुजफ्फरपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कॉलेज में कुल 1100 बच्चे हैं. हिंदी डिपार्टमेंट में 110 और 10 क्लास भी हिंदी की नहीं हुई है पिछले 3 साल में. कॉलेज में छात्र तो आते ही नहीं.


इस घटना से बिहार विश्वविद्यालय के शिक्षा व्यवस्था की पोल खुलती नजर आ रही है. कॉलेजों महाविद्यालयों की संख्या तो बढ़ती जा रही है पर क्लास लेने वाले महाविद्यालयों की संख्या घटती जा रही है. प्रोफेसर, कॉलेज और शिक्षा व्यवस्था पर करोड़ों खर्च होते हैं. सैलेरी और अन्य मदों पर कई करोड़ खर्च हो जाते हैं पर शिक्षा के स्तर को सुधारा नहीं जा सका है, और न क्लास में बढ़ोतरी हुई है. तो क्या महाविद्यालय केवल डिग्रियां बांट रहे हैं. परीक्षा व्यवस्था पर भी सवालिया निशान उठते हैं. 3 साल की डिग्रियां 6 साल में पूरी होती है. इस तरह से क्या महाविद्यालयों में मकान और विभागों के बिल्डिंग बनाकर ही कॉलेज की खानापूर्ति हो रही है. जब बच्चे आते ही नहीं तो कॉलेज को बंद क्यों नहीं कर दिया जाए. महाविद्यालय में जब क्लास नहीं होते तो इतने खर्चे क्यों?


एक प्रोफेसर ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर सैलरी लौटाने की बात कही. न जाने कितने प्रोफेसर होंगे जिन्होंने क्लास नहीं ली होगी वर्षों से. जिन महाविद्यालयों में पढाई नहीं होते हैं उन्हें तो बंद कर देना चाहिए क्योंकि परीक्षा होंगे और डिग्रियां बांटी जाएंगी. क्लास नहीं करने पर भी कुछ फाइल लेकर छात्रों को परीक्षा फॉर्म भरने की मंजूरी मिल जाती है. क्लास में आने की न्यूनतम प्रतिशत की बाध्यता भी अब नहीं दिखती है जो किसी जमाने में 70% से ज्यादा की उपस्थिति अनिवार्य थी जो अब तो यह व्यवस्था कहीं दिखती ही नहीं. कुछ पैसों की फाइन लेकर छात्रों को फॉर्म भरने की इजाजत मिल जाती है. छात्र क्यों आएंगे क्लास में और क्लास में पढ़ाई भी नहीं होती. इन सब कारणों से शिक्षा व्यवस्था की इस परिपाटी के कारण भी छात्र महाविद्यालय नहीं आते हैं.

प्रोफेसर डॉ ललन कुमार के मामले में बिहार विश्वविद्यालय ने सैलरी वापस लेने से मना कर दिया इसलिए कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. क्लास नहीं होने की शिकायत की जांच कराई जाएगी और उन्हें किसी अन्य कॉलेज में प्रतिनियुक्ति कर दिया जायगा. डॉ ललन कुमार की रोचक कहानी ने शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है और उम्मीद है विश्वविद्यालय इसे सुधारने की कोशिश करेगी.

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