Bharti Teacher Training College शोध नवीन ज्ञान का सृजन है-डॉ. राजेश्वर कुमार

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Muzaffarpur 21 May : दिनांक 21/05/2024 को Bharti Teacher Training College के वार्षिक कार्यशाला के सात वें दिन के प्रथम सत्र में डॉ. राजेश्वर कुमार, सहायक प्राध्यापक ,हिंदी विभाग- लंगट सिंह महाविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर ने शोध के संसाधनों को जुटाने पर बौद्धिक दिया ,जिसमें उन्होंने भारतीय दर्शन के अनुसार शोध, अनुसंधान और गवेषण को समझाया, और कहा कि शोध नवीन ज्ञान का सृजन है, समस्याओं का निराकरण या समाधान है।

Bharti Teacher Training College

सही मायने में शोध राष्ट्र और समाज के आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिए , शोध करने के लिए एक एक सिस्टम विकसित करना चाहिए ताकि यहां पर शोधकों को अपने विषय से संबंधित संसाधनों को जुटाने में और उसकी एक समग्र प्रतिफल के रूप में समाज और राष्ट्र को एक नई दिशा देने वाला शोध मिल सके । हम भारत को विश्व गुरु होने की बात करते है,इसका कतई ये मतलब नही है कि हम सुपर पावर वाले हो जाएंगे, इसका मतलब है विद्या ज्ञान देने के लिए ,बल योगदान देने के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा करने के लिए होना चाहिए , मतलब समग्र विकसित देश होना चाहिए ।

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सही मायने में देश के सभ्यता और संस्कृति गहन शोध का परिचारक है । शोध अपने आप में एक नई दृष्टि प्रदान करने वाला है, अपने देश की सभ्यता और संस्कृति में कोई कहानी या कविता पूरी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती थी उसके भौगोलिक स्थिति ,उसकी दशा, सभी चीजों को प्रदर्शित करने वाला हुआ करता था वैसे ही आज का भी शोध होना चाहिए । शोध में बहु अनुशासनिक दृष्टि होनी चाहिए , सही मायने में शोध की शुरुआत मतलब उसकी समस्या हमेशा शोधके को अपनी बोली या भाषा में करनी चाहिए ताकि समाधान को ढूंढने में तकलीफ ना हो दिक्कत ना हो ।

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उन्होंने अपने विषय के इर्द गिर्द रहते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मर्म को बखूबी ढंग से समझाया और कहा कि संसाधनों को जुटाना आसान है ,अगर शोध की दृष्टि विद्यार्थियों में स्नातक लेवल से ही अगर कराया जाए , उनके अंदर किसी समस्या को हल ढूंढने के लिए मौका दिया जाए ,तब यह शोध करना अपने देश के लिए विकसित और विश्व गुरु बनने जैसा होगा ।

दूसरे दूसरे सत्र में डॉ राजीव कुमार जी बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर फिलासफी विभाग के प्रोफेसर शैक्षिक नेतृत्व प्रबंधन और शिक्षक शिक्षा के कार्यक्रम के ऊपर एक बौद्धिक रखा जिसमें प्रशिक्षण महाविद्यालय के शिक्षक सही मायने में एक मूर्तिकार है जो मूर्तिकार बनने का प्रशिक्षण देते है ।

उन्होंने खलील जिब्रान की बात की ,जो शिक्षक के लिए उन्होंने कहा था कि बच्चों के मन में एक बीज को अंकुरित कर देने वाला शिक्षक होता है, जो भविष्य में वह बीज वृक्ष के रूप में विकसित होता है । हॉलिस्टिक शिक्षा और तृतीय उपनिषद के बहाने उन्होंने नेतृत्व और प्रशासनिक व्यवस्था को बखूबी ढंग से समझाया ।

शिक्षा अर्जन करने का मतलब है, तार्किक प्रवीणता , वैज्ञानिक दृष्टि, राष्ट्र प्रेम संवेदनशील आदि गुणों से ओत प्रोत होना । विभिन्न भाषाएं हमारे शक्ति है, भाषाओं की विविधता भारत देश की सभ्यता और उसकी सुंदरता है । इस तरह से उन्होंने बहुत कम शब्दों में अपने विषय के मर्म का पाथेय सबों को दिया ।

इस दोनों सत्र में महाविद्यालय सभी प्राध्यापक और कार्यकर्ता उपस्थित रहें एवं प्रभारी प्राचार्य राजेश कुमार वर्मा उपस्थित रह

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