Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

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Muzaffarpur 16 February : B.R.A. Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वावधान में इंडियन कौंसिल ऑफ़ हिस्टॉरिकल रिसर्च द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन होने जा रहा है। राष्ट्रीय सेमिनार का मुख्य विषय है “भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ऐतिहासिक विकास” (The historical development of cultural nationalism in Bharat).

Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग

विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्षा सह कार्यक्रम संयोजक प्रो नीलम कुमारी ने बताया कि 17 एवं 18 फरवरी को भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम में उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी मोतीहारी के कुलपति प्रो, संजय श्रीवास्तव होंगे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रोफेसर दिनेश चंद्र राय करेंगे।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बीज वक्तव्य राजनीति विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर संगीत कुमार रागी द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा।

Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन
Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

दूसरे दिन समापन समारोह के मुख्य अतिथि राज्यसभा के पूर्व सदस्य प्रोफेसर राकेश सिन्हा होंगे।

Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन
Bihar University राजनीति विज्ञान विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

कार्यक्रम की सफलता के लिए कार्यक्रम के समन्वयक डॉ दिलीप कुमार एवं आयोजन सचिव डॉ अमर बहादुर शुक्ला बनाए गए हैं। आयोजन कमेटी में डॉ भारती सहेता, डॉ दिलीप कुमार, डॉ कांतेश कुमार, और डॉ रक्षा सिंह अपनी मुख्य भूमिका निभाएंगे।

प्रो नीलम कुमारी ने प्रेस को बताया कि दो दिनों के इस राष्ट्रीय सेमिनार में भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श होगा। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर महर्षि दयानंद, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद एवं अरविंदो के विचार दर्शन पर भी विद्वानों द्वारा विमर्श किया जाएगा।

आगे उन्होंने बताया कि इस बौद्धिक विमर्श के माध्यम से हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित रखते हुए आधुनिक एवं वैश्विक दृष्टिकोण के साथ संतुलन बनाने की दिशा में विचार करने की जरूरत है। भारत की सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात कर समावेशी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना ही इस विमर्श का उद्देश्य होगा।

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