Muzaffarpur 10 March : वाराणसी के होटल ताज गंगेज में 7 से 9 मार्च तक आयोजित तीसरे Banaras Lit Fest 2025 ‘बनारस लिटरेचर फेस्टिवल’ में विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग, बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्विद्यालय की सहायक प्राध्यापिका डॉ० भारती सेहता सम्मानित वक्ता के रूप में आमंत्रित थीं। इन्होंने “भूमंडलीकरण के 35 साल: साहित्य और समाज के बदलते रिश्ते” विषय पर अपना सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया।
Banaras Lit Fest 2025 में डॉ० भारती सेहता
अपने संबोधन की शुरूआत में डॉ० सेहता ने कहा कि ऐसा नहीं है कि भूमंडलीकरण 35 साल पहले शुरू हुआ। हमारे यहाँ तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परंपरा बहुत पुरानी है। औपनिवेशिक काल में जिस तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पूँजी बाजार का विस्तार किया, हम भूमंडलीकरण की शुरूआत वहाँ से भी देख सकते हैं। वैसे यदि हम भूमंडलीकरण के 35 सालों की बात करें तो इसकी विधिवत शुरूआत 24 दिसम्बर, 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ० मनमोहन सिंह के बजट भाषण से मानी जाती है। डॉ० सेहता ने भूमंडलीकरण को समझाते हुए बताया कि पूंजी, श्रम, और प्रौद्योगिकी का मुक्त प्रवाह तथा आयात शुल्क में कमी, ये चार इसके महत्वपूर्ण घटक हैं।

इन्होंने युवाल नोआ हरारी की तीन पुस्तकों (सेपियन्स, होमो डेयस और नेक्सस) को उद्धृत करते हुए भूमंडलीकरण के बारे में जो बातें कहीं, उनका सार यही है कि सेपियन्स ने हमें बताया कि हम कहाँ से आये थे, और होमो डेयस हमें बताती है कि हम कहाँ जा रहे हैं। आज एआइ के बाद भी हम कहाँ चुक गए? हमने बहुत कुछ खो दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात कि हमने अपने विजडम को खोया है। उपभोक्तावाद और वैश्विक संपर्क ने लेखन की शैली और समाज की सोच को नया स्वरूप दिया है।

डॉ० सेहता ने आगे भूमंडलीकरण से पर्यावरण पर आए दुष्प्रभावों के ऊपर भी चिंता व्यक्त की। सौंपोगे अपने बाद विरासत में क्या मुझे, बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से। अशअर नजमी का यह शेर पढ़ते हुए इन्होंने समाज से यह सवाल किया कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं? भूमंडलीकरण के बाद भारतीय समाज, जो एक कम्युनिटी आधारित समाज था, मास सोसाइटी में तब्दील हो गया। इस मास सोसाइटी में सामाजिक मूल्यों, आपसी भाईचारे और सहयोग में कमी आई है।

एक पॉलिटिकल साइंटिस्ट और फेमिनिस्ट होने के नाते महिलाओं के विषय में इन्होंने कहा कि भारत में हम महिलाओं को तमाम अधिकार बहुत आसानी से प्राप्त हो गए, लेकिन हम महिलाएँ अपने कर्तव्यों की बातें नहीं करतीं। सवाल है कि आखिर कोई पुत्री अपने माँ-बाप की अर्थी को कंधा क्यों नहीं देतीं? इन्होंने हाल की दो दु:खद घटनाओं का भी जिक्र किया जिसमें बैंगलोर के अतुल सुभाष और आगरा के मानव शर्मा ने पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्याएँ कीं। डॉ० सेहता के अनुसार यह ‘पुरुष-विरोधी नारीवाद’ है जिसने मैरिज स्ट्रक्चर की जड़ों को कमजोर किया है। यह कहीं न कहीं भूमंडलीकरण का ही प्रभाव है। इस पर भारतीय महिलाओं और नारीवादी चिंतकों को गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इन्होंने कहा कि फेमिनिज्म से अधिक हमें ह्यूमनिज्म की आवश्यकता है। मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से रहित दुनिया कभी भी सुंदर नहीं हो सकती। इसलिए महिलाओं के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है।
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— RAJESH GOLTOO (@GOLTOO) March 9, 2025
कैलाश सत्यार्थी, लक्ष्मी पुरी, अमरीश त्रिपाठी, विक्रम संपत, बद्री नारायण आदि जैसे गणमान्य लोगों की उपस्थिति वाले मंच से डॉ० सेहता के व्याख्यान को उपस्थित साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों ने खूब सराहा। इस प्रतिष्ठित मंच पर अपनी प्रस्तुति देकर इन्होंने अपने विश्वविद्यालय का नाम गौरवान्वित किया है।