RDS College के सभागार में द्वि- दिवसीय संगोष्ठी “बदलता समय:आज का साहित्य'” का शुभारंभ

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Muzaffarpur 19 October : RDS College मानविकी संकाय, बी.आर.अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय एवं अभिधा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर के संयुक्त तत्वावधान में रामदयालु सिंह महाविद्यालय के सभागार में द्वि- दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। प्रथम सत्र में प्रो.सतीश राय की अध्यक्षता में ‘बदलता समय:आज का साहित्य’ विषय विचार-विमर्श हुआ। रामदयालु सिंह महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो.अनिता सिंह ने सभी अतिथि विद्वानों का स्वागत अंग-वस्त्र और वक्तव्य देकर किया।

RDS College के सभागार में द्वि- दिवसीय संगोष्ठी "बदलता समय:आज का साहित्य'" का शुभारंभ
RDS College के सभागार में द्वि- दिवसीय संगोष्ठी “बदलता समय:आज का साहित्य'” का शुभारंभ

अपने उद्घाटन-भाषण में प्रख्यात आलोचक डाॅ.रवि भूषण ने कहा कि समय कुछ नहीं है, मनुष्य ही सब कुछ है और वह ही समय को बदलता और बनाता है। आगे उन्होंने कहा कि समय का सत्य भी कुछ प्रभुत्वशाली देशों व लोगों रचा-गढ़ा जा रहा है आज जो कहा जा रहा है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्या नहीं कहा जा रहा है। प्रखर कवि मदन कश्यप ने कहा कि इस वर्तमान दौर में सत्ता ने समाज को नये तरह से प्रभावित किया है।2014 के बाद समाज के साथ-साथ साहित्य में भी सह-अस्तित्व की जगह असहिष्णुता बढ़ी है। प्रो.सतीश राय ने अध्यक्षीय व्यक्त में सभी विद्वानों के वक्तव्य का समाहार करते हुए जिगर मुरादाबादी कहा कि ‘उनका जो काम है अहले सियासत जाने, हमारा पैगाम मोहब्बत है, जहाँ तक पहुँचे’। प्रो.सत्येन्द्र सिंह ने सभी का धन्यवाद-ज्ञापन एवं डाॅ.हेमा ने मंच का संचालन किया।

RDS College के सभागार में द्वि- दिवसीय संगोष्ठी "बदलता समय:आज का साहित्य'" का शुभारंभ
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दूसरे सत्र का प्रारंभ ‘समकालीन हिन्दी कहानी और संप्रेषणीयता का संकट’ विषय से हुआ। सत्र की अध्यक्षता प्रो. पूनम सिंह तथा मंच संचालन डाॅ. चित्तरंजन कुमार ने किया। आधार वक्तव्य में प्रो.रमेश ऋतंभर ने कहा कि आज हमारा समय बहुस्तरीय व जटिल है और एक ही साथ कई युग परस्पर गुंथे हुए हैं और हमारे दौर की कहानियाँ उस जटिल बहुल यथार्थ को बखूबी व्यक्त और संप्रेषित कर रही हैं।

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आजकल के संपादक राकेश बिहारी ने कहा कि संप्रेषणीयता का संकट नहीं, प्रश्न होना चाहिए, क्योंकि संप्रेषणीयता लेखक से ज्यादा पाठकों पर भी निर्भर है। उन्होंने कहा कि आज के बदलते यथार्थ की बहुस्तरीय कहानियाँ है, वह पाठकों से भी तैयारी माँगती है, इसलिए पाठकों का भी सजग व तैयार होना होगा। कवि-पत्रकार व आजकल के पूर्व सम्पादक राकेश रेणु ने बदलते समय के संदर्भ में कहानी के सीमित यथार्थ भूमि व संप्रेषण का सवाल उठाया। प्रो.सुनीता गुप्ता ने हिन्दी कहानी की लम्बी परम्परा का जिक्र करते हुए संप्रेषण के संदर्भों को व्याख्यायित किया।

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बनारस से आए आलोचक नीरज खरे ने कहानी विधा और संप्रेषण के परस्पर सम्बन्ध और उसके विभिन्न आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला। दिल्ली से आई कथालोचिका डॉ.रश्मि रावत ने भी कहानी और संप्रेषण के अन्तर्सम्बन्ध और पाठक की सीमाओं पर गहनता और विस्तार से प्रकाश डाला। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पूनम सिंह ने सभी वक्ताओं के विचारों का समाहार करते हुए आलोचकों के समक्ष संप्रेषणीयता को लेकर कतिपय सवाल खड़े किए। दूसरे सत्र का धन्यवाद-ज्ञापन डॉ.मनोज कुमार सिंह ने किया।

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।संगोष्ठी के प्रारंभ में महाविद्यालय के मंहथ दर्शन दास पुस्तकालय में पुस्तक-प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया।
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संगोष्ठी में मुम्बई से आए प्रख्यात फिल्मकार लेखक अविनाश दास, प्रो.रवीन्द्र उपाध्याय, प्रो.प्रमोद कुमार, प्रो.सरोज कुमार वर्मा, प्रो.नीलिमा झा, प्रो.संजय सुमन, डॉ.एम.एन.रजवी, डॉ.ललित किशोर, डॉ.राजेश कुमार, डॉ.हसन रजा, डॉ.प्रियंका दीक्षित, डॉ.कृतिका वर्मा, डॉ.नियाज अहमद, डॉ.नीरज कुमार मिश्र, डॉ पूनम कुमारी चन्द्रदेव सिंह, पत्रकार अनिल गुप्त, संगीता सुभाषिणी, कुमार विभूति आदि और काफी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहीं। संगोष्ठी के प्रारंभ में महाविद्यालय के मंहथ दर्शन दास पुस्तकालय में पुस्तक-प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया।

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