वाराणसी में देव दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

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Varanasi 8 November : दीपावली के 15 दिन बाद वाराणसी में देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. अयोध्या की दीपावली के बाद शिव की काशी में भव्य देव दीपावली मनाई गई. इसी दिन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बाद नदी में स्नान करके दीपदान किया जाता है. माना गया है कि ऐसा करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वाराणसी के 84 घाटों में पर रोशन हुए 21 लाख दीपक,अलग ही रौनक देखने को मिली . घाटों पर आरती और घण्टा घड़ियालों से देवताओं का स्वागत हुआ.

Twitter Image of Dev Deepawali in Varanasi


देवदीवाली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है। यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है।
कहा यह भी जाता है की काशी नरेश ने अपने शहीद सैनिकों के लिए घाटों पर दिप प्रज्वलन की प्रथा शुरू की थी. एक मान्यता है की रानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा पंच गंगा घाट से देव दीपावली की शुरुआत की गई थी.

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देव दीपावली का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। कार्तिक मास में त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने देवताओं पर अत्याचार शुरू किया तब भगवान विष्णु ने इस क्रूर राक्षस का वध इसी दिन किया था। देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी।

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कहा जाता है देव दीपावली के दिन स्वर्ग से देवता काशी आते हैं. इस साल बाबा विश्वनाथधाम के 84 घाटों को 21 लाख दीपों और लगभग 80 लाख रुपये के फूलों से सजाया गया है. इस महापर्व पर काशी का प्रत्येक घाट अलग-अलग रंग बिखेरता रहा . लेजर शो, आतिशबाजियां, दीपदान, सजावट , मेला लगाया गया . देवदीवाली भव्य उत्सव देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रही.


देव दीपावली पर दीप दान करने का बहुत महत्व है. इस दिन बनारस में सूर्यास्त के साथ ही उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर लाखों दीपों की रौशनी दिखने लगी . काशी के सभी घाटों पर भव्य आरती, घण्ट-घड़ियालों की ध्वनि से देवताओं का स्वागत किया जाता है.

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