Muzaffarpur 15 November : चल रही श्री मद् भागवत महापुराण कथा व्यास परम श्रद्धेय श्री अमित कृष्ण शास्त्री जी महाराज के मुखारविंद से चतुर्थ दिवस में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।
झूम उठा कृष्ण जन्मोत्सव में मुजफ्फरपुर।।

चतुर्थ दिवस की कथा में पूर्व में ही महाराज श्री ने श्री ध्रुव चरित्र सुनाया। ध्रुव चरित्र में महाराज श्री ने कहा कि अगर ध्रुव जैसा बालक सबको चाहिए होता है, तो ध्रुव की मां सुनीति हर मां को बनना पड़ेगा। महाराज श्री ने ध्रुव चरित्र में विस्तार से बताया की ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि से अपमानित होकर रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास आकर क्षत्रिय स्वभाव के कारण रोते हुए क्रोध में भरे हुए ध्रुव जी ने अपनी मां सुनीति से अपनी सौतेली मां सुरुचि के तीखे बचन कहे कि कैसे पिता उत्तानपाद की गोद में जाने से मना किया। सौतेली मां सुरुचि ने कहा की अगर पिता उत्तानपाद की गोद में बैठना है, तो जंगल जाके भगवान की तपस्या कर, भगवान को प्रसन्न कर, जब भगवान प्रसन्न होकर दर्शन दे तब भगवान से वरदान मांगे की अगले जन्म में हमें सुरुचि मां की गोद से जन्म दें, तभी पिता उत्तानपाद की गोद में बैठने के अधिकारी होगे तुम।

महाराज श्री कहते हैं की इस सुरुचि की बात ने भगवान और भक्त दोनों का अपमान कर दिया। एक तो भगवान को प्राप्त करने का साधन कठिन है, दूसरा अगर भगवान प्रसन्न हो जाएं तो भगवान की दिव्य दर्शन अति दुर्लभ है, और तब भगवान से ध्रुव प्रार्थना करें कि मुझे अगले जन्म में सुरुचि मां की गोद से जन्म दें। महाराज श्री ने कहा की कैसे घमंड में भर के सुरुचि ने अपने आप को भगवान से ज्यादा दुर्लभ बना लिया।

भगवान को प्रसन्न करके उनसे वरदान मांगा जाए कि सुरुचि की गोद से ध्रुव का जन्म हो, आगे चलकर प्रहलाद चरित्र सुनाया कि कैसे भगवान को आने में विलंब हुआ, और भगवान ने भक्त से कैसे क्षमा मांगी, कैसे प्रहलाद चरित्र में प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु ने पुत्र प्रहलाद की भक्ति के कारण कैसे प्रहलाद को सताया। कभी पर्वतों से गिराया, कभी उबलते तेल में खौलाया लाया, कैसे हाथियोंसे कुचलवाया, अनेकानेक तरीके से प्रहलाद को सताया गया रोका गया कि भगवान हरि की भक्ति प्रहलाद करना छोड़ दें।

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अंतिम में हिरण्यकशिपु की बहन होलिका से जलवाया गया, परंतु भगवान श्री हरि नारायण की असीम अनुकंपा के कारण प्रहलाद का बाल भी बांका ना हुआ। अंतिम में भगवान श्री हरि नरसिंह बनके हिरण्यकशिपु के भवन में स्वर्ण स्तंभ फाड़कर प्रगट हुए, हिरण्यकश्यप के समक्ष ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए और दोनों को पूर्ण करते हुए उसका संध्या काल में अपने जांघों के ऊपर रख कर हिरण्यकश्यप का वध किया और श्री प्रहलाद जी को द्वादश भागवतो में स्थान दिया।
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कथा के क्रम में महाराज श्री ने बताया कि कैसे भगवान ने चारों वर्णों की व्यवस्था बनाई, हर एक वर्ण व्यवस्था एक दूसरे के पूरक रहे, कैसे सभी वर्णों के अलग-अलग कर्म का निरूपण बतलाया। ब्राम्हण भगवान के मुख है, क्षत्रिय भगवान की भुजाएं हैं, वैश्य भगवान का उदर है, सूद्र भगवान के चरण है। महाराज श्री ने बताया कि सभी वर्ण के लोग अपना कर्म करके भगवान को प्राप्त कर सकते हैं, वह मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।

इसीलिए ब्राह्मण हमेशा अपने कर्म के द्वारा तीनों वर्ण की व्यवस्था बनाकर रखें। ब्राह्मणों का कर्म यज्ञ शादी पूजन पाठ धर्म धर्म का मार्गदर्शन करना क्षत्रिय, अपनी बाहुबल से तीनों वर्णों की व्यवस्था बनाएं, तीनों वर्णों के लोगों की रक्षा करें, वैश्य अपने कर्म के द्वारा तीनों वर्णों के पोषक की सामग्री द्वारा सेवा करें, शूद्र अपने कर्म के द्वारा इन तीनों वर्णों में सभी व्यवस्थाएं अपने कर्म के द्वारा बनाएं। इतने में ही हर व्यक्ति को भगवान की प्राप्ति हो सकती है, और हम सभी एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। इसीलिए सबका साथ सबका विकास।
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आगे भगवान ने कैसे वृत्ता सुर का उद्धार किया, व कैसे भगवान ने गज ग्राह उद्धार किया। महाराज श्री ने बताया कि भगवान का वचन है कि अपने भक्तों का उद्धार तो करते ही हैं, लेकिन जो भक्तों के चरण पकड़ के आगे बढ़ते हैं उनका भगवान भक्तों से पहले उद्धार करते हैं। आगे कैसे भगवान सूर्य वंश में आते हैं। श्री राम अवतार में चारों अवतारों का वर्णन संक्षेप में किया। महाराज श्री ने बताया श्री राम अवतार में महाराज श्री ने एक बधाई के द्वारा श्री राम जन्मोत्सव में भक्तों को झूमाया व कथा के अंतिम में बड़े ही धूमधाम से श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया झूम उठे हजारों भक्त श्रद्धालु।
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