Banaras Hindu University के शोधकर्ताओं का कृषि फसल चेनोपोडियम एल्बम (बथुआ) पर महत्वपूर्ण अध्ययन

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Muzaffarpur 23 April : बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो दिनेश चन्द्र राय के नेतृत्व में Banaras Hindu University के डेयरी विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने कम उपयोग वाली कृषि फसल चेनोपोडियम एल्बम (बथुआ) पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है और इसके दीर्घकालिक संरक्षण के लिए तकनीक विकसित की है.

Banaras Hindu University Researchers

शोध दल में श्री सुनील मीना, सहायक प्रोफेसर, सुश्री कीर्ति रेड्डी, कृषि विज्ञान संस्थान, डॉ. कमलेश कुमार, एमपीएयूटी, उदयपुर और डॉ. पीबी गौतम शामिल रहे. अध्ययन के निष्कर्ष विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित जर्नल माइक्रोकेमिकल जर्नल के जून 2024 संस्करण में प्रकाशित हुआ है.

Banaras Hindu University Researchers
Banaras Hindu University Researchers

रिसर्च टीम की अगुवाई कर रहे Banaras Hindu University के कुलपति प्रो दिनेश चन्द्र राय ने कहा कि वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण में वृद्धि के कारण खाद्य असुरक्षा एक वैश्विक चुनौती के रूप में सामने आई है. वैश्विक खाद्य सुरक्षा से निपटने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, और चुनौतियाँ काफी जटिल और आपस में जुड़ी हुई हैं। कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां ​​और नीति निर्माता खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए फसलों या सब्जियों की “उपेक्षित और कम उपयोग की गई” प्रजातियों के पूंजीकरण पर जोर देते हैं .

इन प्रजातियों के सेवन से ग्रामीण निम्न-आय और अन्य कमजोर सामाजिक समूहों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मदद मिलती है. उचित संरक्षण विधियों का इस्तेमाल कर बथुआ जैसे पोषक तत्वों से भरपूर पौधों की प्रजातियाँ गरीबी, भूख, कुपोषण से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है. साथ ही आय उत्पन्न करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मदद करती हैं. बथुआ और अन्य पत्तेदार सब्जियां सर्दी के मौसम में उगाई जाती हैं और उनमें पानी की मात्रा अधिक होने के कारण जल्दी खराब हो जाती हैं.

सर्दी में अत्यधिक उत्पादन, अपर्याप्त भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण क्षमता के कारण इन मौसमी सब्जियों की भारी बर्बादी होती है. इस प्रकार, इन मौसमी सब्जियों को संरक्षित करने वाली संरक्षण तकनीकों का उपयोग और पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि इनका उपयोग ऑफ-सीजन में किया जा सके. सुखाना एक प्राचीन तकनीक है जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने पर भोजन को संरक्षित कर सकती है, और लंबे समय तक संग्रहीत और उपभोग किया जा सकता है.

कुलपति प्रो राय ने बताया अध्ययन का उद्देश्य सी. एल्बम (बथुआ) पाउडर को धूप, ट्रे और फ्रीज-सुखाने जैसी विभिन्न सुखाने की तकनीकों द्वारा तैयार करना और पोषण संरचना पर निर्जलीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन करना था. इसके अलावा तैयार की भंडारण स्थिरता; बथुआ पाउडर की भी परिवेशीय परिस्थितियों में जांच की गई.


कुलपति प्रो राय ने इस रिसर्च की फंडिंग के लिए आईओई बीज अनुदान-द्वितीय” (विकास योजना संख्या 6031(बी) और पीएफएमएस योजना संख्या) के लिए इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (आईओई) योजना, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (यूपी), का अपनी रिसर्च टीम की तरफ से आभार व्यक्त किया.


उन्होंने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में रिसर्च के अनुकूल माहौल बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दुहराते हुए कहा कि अकादमिक रिसर्च में समाज की जरूरतों को प्राथमिकता में रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में उच्च क्वालिटी रिसर्च पब्लिकेशन, रिसर्च फंडिंग, पेटेंट आदि को बढ़ावा देने के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना बनाई जा रही है जिसके सकारात्मक परिणाम जल्द ही मिलने लगेंगे. कुलपति प्रो राय ने कहा कि सिर्फ नियुक्ति एवं प्रमोशन के लिए रिसर्च पेपर प्रकाशित करने की संस्कृति उनके कार्यकाल में नही चलेगी बल्कि क्वालिटी रिसर्च पर मुख्य ज़ोर देना है।

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