Patna Kavya Goshti “युगानुगूँज ” के तत्वाधान में “पटना काव्य गोष्ठी ” का आयोजन

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Muzaffarpur 29 April: मौर्य साम्राज्य की राजधानी रही पाटलिपुत्र की गरिमामयी धरती पटना में सोमवार (२९ अप्रैल) को  “युगानुगूँज ”  के तत्वाधान में डा. निशि सिंह के आवास पर “पटना काव्य गोष्ठी ” Patna Kavya Goshti का आयोजन हुआ।

Patna Kavya Goshti

रामसेवक सिंह महिला कॉलेज सीतामढ़ी की अध्यक्षता में हुई पटना में काव्य गोष्ठी।

“नए सृजन के लिए सृजनात्मक भूमि का काम करती हैं,घरेलू साहित्यिक गोष्ठियाॅं !”


साहित्य और संस्कृति को समर्पित युगानुगूँज एक  साहित्यिक व सामुदायिक संस्था है जो हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी  साहित्य को बढ़ावा देती है। नए साहित्यकारों को मंच देना इस संस्था का खास मकसद है। यह संस्था राष्ट्रव्यापी तो है ही, अब इसके शुभ कदम प्रवासी भारतीय को जोड़कर विदेश में भी अच्छा काम कर रहे हैं । अपने परचम तले इस संस्था ने अपने सदस्यों की बाल साहित्य संबंधी   रचनाओं का संकलन निकाला ,जो विदेशी शिक्षण संस्थानों  के पाठ्यक्रम में भी लगाई गई हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भी कविता को एक सकारात्मक दिशा देने की पहल कर रहे हैं l

Patna Kavya Goshti
Patna Kavya Goshti


“पटना काव्य गोष्ठी” की अध्यक्षता मुक्त छंद की चर्चित कवयित्री डॉ पंकज़वासिनी  ने  किया , जो इस संस्था की बिहार राज्य -प्रमुख भी हैं। इस संस्था की सिटी प्रमुख डॉ निशि सिंह अपने आवास पर आयोजित इस संगोष्ठी के आरंभ में आगत कवियों का स्वागत करते हुए कहा कि नए पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर एक -दूसरे से कुछ सीखने -सिखलाने के इस सारस्वत आयोजन में आप लोगों की सहभागिता हमारे लिए वंदनीय हैl

Patna Kavya Goshti


              “पटना काव्य गोष्ठी” में शहर  के नए -पुराने कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक कविताओं का पाठ किया l इस संगोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए तर्पण एवं राइजिंग बिहार के साहित्य -संपादक श्री सिद्धेश्वर जी ने कहा कि  ,” इस तरह की छोटी-छोटी सार्थक घरेलू साहित्यिक गोष्ठियाॉं , उर्वरा का काम करती हैं जिससे अच्छे साहित्य का सृजन होता है।”  युगानुगूँज ” संस्था की सक्रियता स्वागत योग्य है!


           पटना काव्य गोष्ठी” के इस सारस्वत आयोजन में वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सरिता कुमारी ने अपनी कविता के माध्यम से समकालीन कविता को एक नई दिशा दी – ” नदी के नीचे भी एक नदी बहती है। पत्थर से टकरा-टकरा कर अकस्मात ही नीचे की ओर,उतर आती है नदी ! ” तो दूसरी तरफ प्राकृतिक सुंदरता को बिखेरती हुई,वरिष्ठ कवयित्री डॉ निशि सिंह  ने काव्य पाठ किया – ” कश्मीर तो बस कश्मीर है / डल झील पर तैरता शिकारा, उसकी ओट से झाॅंकती हुई वो खामोश सुबह “
 आज के परिप्रेक्ष्य में खो रही इंसानियत की ओर इशारा करते हुए अपूर्व कुमार ने अपनी कविता सुनाई – ” बड़ा अच्छा हुआ! /बन गया,उनका बड़ा छोरा,/बड़ा आदमी!/ बड़ा अच्छा होता!/बन पाता,/उनका बड़ा छोरा,अच्छा आदमी !”


            “तेरे सवालों का जवाब मैं क्या दूं ?, अपने जख्म का हिसाब मैं क्या दूं ?/ तूफान बनकर बुझा दिया झोपड़ी का दीया, भींगी हुई आंखों को मैं ख्वाब क्या दूं ? ” गजल का पाठ कर सिद्धेश्वर ने माहौल को यादगार महफिल में तब्दील कर दिया l वहीं पर इस महफिल में शामिल हुई युवा कवयित्री राज प्रिया रानी ने अपने अंदाज में “खनकती हॅंसी में छुपी मेरी खामोशी का लहर है / सवालों में उलझे लोगों के तानों का कहर है l/ राज बन जाना कभी मंजूर न था मेरा जीवन / पिघलते शोलो में सुलगते आॅंसुओं का ही डर है!”
      वातावरण में मिश्री की मिठास घोलते हुए गीत का सुमधुर पाठ किया श्री मधुरेश नारायण ने – आसमां में परिंदे उड़े जा रहे हैं, सपनों को पंख लगे जा रहे हैं!” अल्पना कुमारी ने – तुमने देखे हैं बस, चूड़ी, कंगन, हार, / अरे तुम क्या जानो श्रृंगार !” कविता का पाठ कर नारी के विविध रूपों एवं कामकाजी महिलाओं के श्रृंगार का वर्णन किया।
भक्ति रस में डूबी कविता का पाठ किया कृष्णानंद कनक ने – “तुम्हारा नाम लेकर राम, बने बिगड़े सब का काम, भज लो राम,सीता राम!”


   मधु रानी लाल ने अपने  उत्कृष्ट दोहे ~भावों में भर प्रेम शुचि, लिखे शब्द शृंगार ,करे कलम जादू बड़ा, लिक्खे भाव अपार सुनाये। वहीं, स्मिता पराशर ने शाम की खूबसूरती का जिक्र किया,- हल्के हल्के ये शाम की बदली।
शिल्पी कुमारी का पाठ, ” मैं अदृश्य होना चाहती हूॅं” ने और ” सृजन करो मेरी कलम ”  ने सबको मोहित कर दिया। मधु रानी ने  –  लिखती है ये लेखनी प्यार और मनुहार, तथा लता पराशर ने सामाजिक विसंगतियों  पर प्रहार करती हुई अपनी कविताओं का पाठ किया। अंत में युगानुगूॅंज की बिहार राज्य प्रमुख और इस कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉक्टर पंकजवासिनी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामलला जन्मोत्सव -संबंधी गरिमामय दोहे : जन्म हुआ श्री राम का, हर्षित हुआ त्रिलोक।
ढोल नगाड़े बज उठे, मिटा महल का शोक ।।
राम पालने झूलते , हुमकें- पटकें पाॅंव ।
खिल-खिल देखें मात-पितु, नैनन ठंडी छाॅंव ।।
और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के उज्ज्वल चरित्र पर सीता -परित्याग के लगे कलंक का प्रक्षालन करती कविता आत्मकथ्य सिया का:
अपने जीवन के /प्रेमपगे तेरह बहुमूल्य वर्ष /मेरे नाम कर दिया तुमने…./हे राम ! /तुमने मुझ पर कभी शक नहीं किया: /अन्यथा हर ली गई पत्नी की मुक्ति के लिए /साधनहीन वनवासी होते हुए भी /अथाह सागर को बाॅंधने का असाध्याय कार्य कर /स्वर्ण नगरी की सामर्थ्य रखने वाले /दशानन से युद्ध करना /स्वीकार न करते तुम ! का पाठ कर “पटना काव्य गोष्ठी” को यादगार बना दिया l

अंत में साहित्य,संस्कृति एवं मानवता को समर्पित अंतरराष्ट्रीय संस्था युगानुगूॅंज की बिहार राज्य प्रमुख डॉ पंकजवासिनी के अध्यक्षीय उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन के साथ पूर्वाह्न में आयोजित इस पटना कवि गोष्ठी को अविस्मरणीय बनाने वाले शानदार ऑफलाइन कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई।

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