Muzaffarpur 29 April : B.R.A. Bihar University के कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र राय के निर्देशन में शोध कर रहे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के डेयरी साइंस एंड फ़ूड टेक्नोलॉजी विभाग के शोध छात्र रहे डॉ. अमन राठौर ने अपने शोध में पाया है कि Poultry Feed Research (पोल्ट्री फ़ीड) में कुसुम के बीज जोड़ने से चिकन मांस की गुणवत्ता में काफी वृद्धि हो सकती है।
Poultry Feed Research
शोध में कुसुम बीज में मौजूद ओमेगा 6 फैटी एसिड, प्रोटीन पोल्ट्री फीड में शामिल करने से चिकन मांस की पौष्टिकता को बेहतर बनाने के वैज्ञानिक प्रमाण मिले । इसके अलावा, कुसुम के बीजों में अन्य पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो मुर्गियों में स्वस्थ वृद्धि, विकास और समग्र स्वास्थ को बढ़ावा दे सकते हैं।

कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय की देख रेख में कुसुम के बीज को 10% तक पोल्ट्री फीड में समावेश किया गया। यह शोध ब्रायलर चिक्स कब्ब-400 स्ट्रेन पर विभाग के पोल्ट्री फार्म में 1 से 42 दिन तक किया गया। जिसमे 200 चिक्स को विभन्न स्तर पर 5 भागो में बाटा गया। शोध में पाया गया कि, कुसुम के बीज का 10% तक प्रयोग करने से ब्रायलर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ा। इसमें विपरीत फीड में इसका प्रयोग करने से ब्रायलर के वजन में वृद्धि हुई तथा फीड उपभोग कम हुआ। शव परीक्षण में, पेट की चर्बी का स्तर कम होता हुआ पाया गया। आहार में कुसुम बीज अनुपूरण के बढ़ते स्तर ने ब्रायलर के रक्त में कोलेस्ट्रॉल, कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन-कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड, बहुत कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन-कोलेस्ट्रॉल स्तरों को कम किया।
शोध में ब्रायलर में क्रिएटिनिन और यूरिक एसिड भी रक्त में कम होते पाए गाये। अध्ययन से पता चला है, कि ब्रॉयलर आहार में 10% तक कुसुम के बीज शामिल करने से विकास मापदंडों, मांस की गुणवत्ता (यानी, भौतिक रासायनिक, बनावट और संवेदी गुण), और हेमटोलॉजिकल परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अब तक प्राप्त मांस की गुणवत्ता और रक्त परिणामों के आधार पर कुसुम के बीज अच्छे आहार घटक प्रतीत होते हैं क्योंकि वे पोल्ट्री मांस के आहार मूल्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इन उत्पादों के मनुष्यों के लिए कई स्वास्थ्य लाभ हैं।

कुलपति प्रो दिनेश चन्द्र राय ने बताया कि किसान और पोल्ट्री उत्पादक अब अपने चिकन मांस की समग्र गुणवत्ता में सुधार के लिए कुसुम के बीजों को अपने फ़ीड फॉर्मूलेशन में शामिल कर रहे हैं। यह सरल जोड़ अंतिम उत्पाद में बड़ा अंतर ला सकता है, जिससे ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि होगी और उत्पादकों के लिए संभावित रूप से अधिक मुनाफा होगा। प्रो राय ने कहा पोल्ट्री फीड मक्का, सोयाबीन, चना और अन्य अनाज पर आधारित है। इन खाद्य सामग्री की ऊंची कीमतों के कारण पोल्ट्री और संबंधित उद्योगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में इस नए शोध से पोल्ट्री फीड इंडस्ट्री को ज्यादा बेहतर विकल्प उपलब्ध होगा।

कुलपति प्रो राय ने कहा अकादमिक रिसर्च का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक प्रगति हासिल करने के बजाय वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने पर केंद्रित होना चाहिए। यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि अनुसंधान से समाज और इसे वित्तपोषित करने वालों के लिए ठोस लाभ हों। इसके अतिरिक्त, सामाजिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने से शोधकर्ताओं को व्यापक समुदाय से जुड़े रहने में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि उनका काम प्रासंगिक और प्रभावशाली बना रहे। और उन महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करना जो समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
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— RAJESH GOLTOO (@GOLTOO) April 28, 2024
अनुसंधान का उद्देश्य नए ज्ञान और अंतर्दृष्टि उत्पन्न करना भी होना चाहिए जो अकादमिक समुदाय और व्यापक समाज दोनों को लाभान्वित कर सके। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक विश्वास और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अकादमिक अनुसंधान नैतिक और सत्यनिष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अकादमिक अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य समाज की बेहतरी में योगदान देना और तत्काल सामाजिक जरूरतों को को पूरा करना होना चाहिए।
यह शोध कार्य एडिनबर्ग विश्वविद्यालय यू.के., के जर्नल ट्रॉपिकल एनिमल हेल्थ एंड प्रोडक्शन, स्प्रिंगर (इम्पैक्ट फैक्टर 1.7) तथा इंडियन जर्नल ऑफ़ एनिमल रिसर्च (इम्पैक्ट फैक्टर 0.5) और एनिमल नुट्रिशन एंड फीड टेक्नोलॉजी (इम्पैक्ट फैक्टर 0.29) जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध शोध जर्नलों में प्रकाशित हुआ है।