Bihar University सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर राष्ट्रीय सेमिनार का समापन, विशेषज्ञों ने रखे विचार

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Muzaffarpur 19 February : B.R.A. Bihar University के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो-दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विकास का इतिहास” का समापन हुआ।

Bihar University सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर राष्ट्रीय सेमिनार

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. राकेश सिन्हा ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सकारात्मक भाव से ही परिभाषित किया जा सकता है और भारत में निवास करने वाले सभी लोग इसके हिस्सेदार हैं। उन्होंने भारतीय धर्म और पश्चिमी धर्म के बीच सबसे बड़ा अंतर वैश्विक चेतना और ब्रह्मांडीय चेतना को बताया। महात्मा गांधी ने ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़कर कार्य किए, इसी कारण वे कालजयी हो गए।

Bihar University सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर राष्ट्रीय सेमिनार
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डॉ. सिन्हा ने आगे कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद में असहमति और आलोचना की पूरी स्वतंत्रता है। यहां एक ही परिवार में कोई नास्तिक हो सकता है, तो दूसरा ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वाला। इसी कारण कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने भारत को पुनर्जन्म लेने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि दुनिया का भविष्य सुरक्षित रह सके।

Bihar University सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर राष्ट्रीय सेमिनार
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भारतीय राष्ट्रवाद को प्राचीनतम बताया गया

विशिष्ट अतिथि डॉ. सुरेश पांडेय ने भारतीय राष्ट्रवाद को प्राचीनतम बताते हुए कहा कि अपने मूल से जुड़े रहकर ही हम राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दिनेश चंद्र राय ने शोधार्थियों से विषय की गहराई में जाकर शोध करने का आह्वान किया।

Bihar University

सेमिनार के पूर्व, विश्वविद्यालय के पूर्व सीनेटर डॉ. अरुण कुमार सिंह ने दो-दिवसीय सेमिनार की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। विभागाध्यक्ष डॉ. नीलम कुमारी ने अपने स्वागत भाषण में इस चर्चा को ऐतिहासिक बताया। वहीं, समाज विज्ञान संकाय की डीन डॉ. संगीता रानी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

Bihar University सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर राष्ट्रीय सेमिनार
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सैकड़ों शोधार्थियों की सहभागिता

इस अवसर पर विभिन्न शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। सेमिनार में डॉ. जीतेंद्र नारायण, डॉ. अनिल कुमार ओझा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. शरदेंदु शेखर, डॉ. ममता रानी, बर्दवान विश्वविद्यालय की डॉ. प्रियंका दत्ता चौधरी, डॉ. देवेंद्र प्रसाद तिवारी, डॉ. पंकज कुमार सिंह समेत सैकड़ों शोधार्थियों ने भाग लिया और विभिन्न सत्रों में अपने विचार रखे।

कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. अमर बहादुर शुक्ला सहित अन्य विभागीय सहयोगियों का योगदान महत्वपूर्ण रहा।

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