RDS College की स्थापना दिवस पर डॉ. पूनम कुमारी द्वारा लिखित रामदयालु बाबू के जीवन दर्शन से प्रेरित ‘झरोखा’ पुस्तक का विमोचन

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Muzaffarpur 20 July : RDS College की स्थापना दिवस पर डॉ. पूनम कुमारी द्वारा लिखित पुस्तक ‘झरोखा’ का कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय ने विमोचन किया। पुस्तक रामदयालु बाबू के जीवन दर्शन से लेकर कॉलेज की गौरवशाली यात्रा का वर्णन करती है।

RDS College की स्थापना दिवस पर ‘झरोखा’ पुस्तक का विमोचन

रामदयालु सिंह महाविद्यालय के 77वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर एक विशेष साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें महाविद्यालय की लायब्रेरियन डॉ. पूनम कुमारी द्वारा लिखित पुस्तक ‘झरोखा’ का भव्य विमोचन हुआ। इस पुस्तक में रामदयालु बाबू के जीवन दर्शन, उनके विचारों की गहराई और उनके द्वारा स्थापित रामदयालु सिंह महाविद्यालय की तेजोमय ऐतिहासिक यात्रा को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।

RDS College की स्थापना दिवस पर 'झरोखा' पुस्तक का विमोचन

पुस्तक का विमोचन बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय द्वारा किया गया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ‘झरोखा’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि यह एक प्रेरणास्रोत है, जो आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा, सेवा और संकल्प के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगी।

RDS College की स्थापना दिवस पर 'झरोखा' पुस्तक का विमोचन

इस अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. अनीता सिंह, शिक्षकों, विद्यार्थियों और अनेक गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। प्राचार्या प्रो. अनीता सिंह ने पुस्तक को महाविद्यालय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का दर्पण बताया और लेखिका डॉ. पूनम कुमारी को बधाई दी।

लेखिका डॉ. पूनम कुमारी ने कहा कि यह पुस्तक लिखना उनके लिए एक भावनात्मक और बौद्धिक यात्रा रही, जो रामदयालु बाबू के व्यक्तित्व और उनके द्वारा शुरू किए गए शैक्षिक आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने का एक प्रयास है।

आरडीएस कॉलेज के प्रो. देवेन्द्र प्रताप तिवारी की पुस्तक भारतीय संघीय व्यवस्था: अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का विमोचन भी कुलपति प्रो दिनेश चंद्र राय के द्वारा किया गयालिए एक भावनात्मक और बौद्धिक यात्रा रही, जो रामदयालु बाबू के व्यक्तित्व और उनके द्वारा शुरू किए गए शैक्षिक आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने का एक प्रयास है।

कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय परिसर में सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी आयोजित की गईं, जिसमें छात्र-छात्राओं ने रामदयालु बाबू के योगदान को रेखांकित किया।

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